A2Z सभी खबर सभी जिले कीअन्य खबरेलातूर

संत रविदास जी कौन थे,उनकी जीवन का परिचय।

 Anand S.Rana: रविदास जी के पिता मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे और वह जूतों का व्यापार और उसकी मरम्मत का कार्य करते थे। कहा जाता है कि बचपन से ही रविदास जी बेहद बहादुर और ईश्वर के बड़े भक्त हुई करते थे। लेकिन उन्हें अपने जीवन काल में उच्च जाति के द्वारा उत्पन्न भेदभाव की वजह से काफी संघर्ष करना पड़ा जिसका जिक्र उन्होंने अपने लेखन के द्वारा किया। उन्होंने लोगों को सीख दी कि पड़ोसियों को बिना भेद-भेदभाव के प्यार करो।

 

कहते हैं कि बचपन में संत रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नंद के पाठशाला गये जिनको बाद में कुछ उच्च जाति के लोगों द्वारा वहां दाखिला लेने से रोका गया। हालांकि पंडित शारदा जी ने महसूस किया कि रविदास कोई सामान्य बालक नहीं है बल्कि यह ईश्वर के द्वारा भेजी गयी संतान है। यह सोचकर पंडित शारदानंद ने रविदास जी को अपनी पाठशाला में दाखिला दिया। रविदास जी बहुत ही तेज और होनहार थे। पंडित शारदा नंद उनसे और उनके व्यवहार से काफी प्रभावित रहते थे वो जानते थे कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में प्रसिद् पाठशाला में पढ़ने के दौरान रविदास जी की पंडित शारदानंद के पुत्र के साथ मित्रता हो गई। एक दिन दोनों लोग लुका-छिपी खेल रहे थे, पहली बार रविदास जी जीते तो दूसरी बार उनके मित्र की जीत हुई। अब रविदास जी की बारी थी लेकिन अंधेरा होने की वजह से वो लोग इस खेल को पूरा नहीं कर सके उसके बाद दोनों ने खेल को अगले सुबह जारी रखने का फैसला किया। सुबह रविदास जी तो खेलने के लिए आये लेकिन उनके मित्र नहीं आये। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद वह अपने उसी मित्र के घर गये और देखा कि उनके मित्र की मृत्यु हो चुकी है।

उसके बाद उनके गुरु ने संत रविदास को अपने बेटे की लाश के पास पहुंचाया। वहां पहुंचने पर रविदास जी ने अपने मित्र के कान में कहा कि उठो ये सोने का समय नहीं है दोस्त, ये तो लुका-छिपी खेलने का समय है। कहते हैं रविदास के ये शब्द सुनते ही उनके मित्र फिर से जी उठे। इस आश्चर्यजनक पल को देख हर कोई हैरान हो गया। इस तरह से अपने चमत्कारों के कारण धीरे-धीरे संत रविदास जी लोकप्रिय होने लगे।

संत रविदास जी को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु थे। मीरा बाई राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी। वो संत रविदास जी से बेहद प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी बनी। अपने गुरु के सम्मान में मीरा बाई ने यें बात कही- ‘गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी, चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी’।,  कहते हैं कि एक बार गुरु जी के किसी विद्यार्थी ने उनसे पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा तो रविदास जी ने किसी काम में फंसे होने के कारण गंगा स्नान करने से मना कर दिया। फिर रविदास जी के एक विद्यार्थी ने उनसे दुबारा गंगा स्नान करने का निवेदन किया तब उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ जिसका मतलब था कि शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा शुद्ध है तो हम भी पवित्र हैं चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये।

AKHAND BHARAT NEWS

AKHAND BHARAT NEWS

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!